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ईरान और इजरायल के बीच चल रही तनातनी ने पूरे मध्य पूर्व में अस्थिरता पैदा की है। इस स्थिति का फायदा तालिबान जैसे समूहों को मिलता है, जो अपनी ताकत बढ़ाने और अपने प्रभाव क्षेत्र को विस्तार करने में लगे हैं।
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जब ईरान और इजरायल एक-दूसरे पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, तो तालिबान ने अफगानिस्तान में अपनी स्थिति मजबूत करने का अवसर पाया है। यह समूह अपने नीतियों और गतिविधियों को बढ़ाने में सफल रहा है।
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ईरान की विद्रोही ताकतों से तालिबान को हथियार और संसाधन प्राप्त करने का मौका मिल रहा है। ईरान का समर्थन तालिबान को और मजबूत करता है, जिससे उसकी सैन्य ताकत में वृद्धि होती है।
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ईरान-इजरायल संघर्ष के कारण, अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान तालिबान की गतिविधियों से हट रहा है। इससे तालिबान को अपने कार्यों को छिपाने और नए सिरे से योजनाएँ बनाने का मौका मिलता है।
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तालिबान ने ईरान और इजरायल के संघर्ष का फायदा उठाते हुए स्थानीय संगठनों के साथ गठबंधन बनाने में सफलता प्राप्त की है। यह सहयोगी नेटवर्क उन्हें अधिक प्रभावी बना रहा है।
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तालिबान का राजनीतिक स्थिति में सुधार होता दिख रहा है, क्योंकि वे अपनी ताकत को बढ़ाकर एक वैकल्पिक शक्ति के रूप में उभर रहे हैं। इस प्रक्रिया में ईरान और इजरायल के संघर्ष ने उन्हें और अधिक अवसर प्रदान किए हैं।
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हालांकि तालिबान को वर्तमान में फायदा हो रहा है, लेकिन ईरान-इजरायल संघर्ष के दीर्घकालिक प्रभाव भी हो सकते हैं। यदि स्थिति स्थिर होती है, तो तालिबान को नए प्रतिकूलताओं का सामना करना पड़ सकता है।
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