जानें उस रात की कहानी जब इंदिरा गांधी और मेनका गांधी के बीच हुआ था ऐसा विवाद कि मेनका को अपने दो साल के बेटे वरुण गांधी के साथ घर छोड़ना पड़ा। एक मॉडल, पत्रकार से नेता बनीं मेनका गांधी की संघर्षमय यात्रा पर एक नजर।
इंदिरा गांधी और मेनका गांधी का विवाद: एक ऐतिहासिक रात की कहानी
मेनका गांधी, जो आज एक प्रमुख नेता के रूप में जानी जाती हैं, कभी मॉडल और पत्रकार भी रही हैं। लेकिन उनके जीवन में एक ऐसा भी वक्त आया जब उन्हें अपने बेटे वरुण गांधी के साथ घर छोड़ना पड़ा। यह कहानी सिर्फ पारिवारिक तकरार की नहीं, बल्कि एक सशक्त महिला के संघर्ष और उसके राजनीतिक सफर की है।
मॉडलिंग से राजनीति तक का सफर
मेनका गांधी का जन्म दिल्ली के एक सिख परिवार में हुआ था। उनके पिता तरलोचन सिंह आनंद भारतीय सेना में अधिकारी थे। मेनका ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लॉरेंस स्कूल से पूरी की और फिर दिल्ली के लेडी श्री राम कॉलेज से स्नातक किया। कॉलेज के दिनों में ही उन्होंने फैशन शो में हिस्सा लेना शुरू किया और मॉडलिंग की दुनिया में कदम रखा। बॉम्बे डाइंग के विज्ञापन के लिए चुनी जाने के बाद उनकी तस्वीरों ने संजय गांधी का ध्यान खींचा और यहीं से उनकी जिंदगी ने एक नया मोड़ लिया।
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मेनका और संजय गांधी का विवाह
संजय गांधी, इंदिरा गांधी के छोटे बेटे, को मेनका की तस्वीरों से प्रेम हो गया। जुलाई 1974 में दोनों ने सगाई की और दो महीने बाद, 23 सितंबर 1974 को शादी कर ली। इसके बाद, मेनका गांधी ने राजनीति में कदम रखा और 1980 में उनकी पत्रिका ‘सूर्या’ ने कांग्रेस की सत्ता में वापसी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इंदिरा गांधी और मेनका के बीच बढ़ते तनाव
1980 में संजय गांधी की एक प्लेन दुर्घटना में मृत्यु हो गई। इसके बाद, राजीव गांधी कांग्रेस के मुख्य चेहरे के रूप में उभरे, जिससे मेनका गांधी और इंदिरा गांधी के बीच तनाव बढ़ गया। कहते हैं कि इंदिरा गांधी ने मेनका को राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों द्वारा आयोजित रैलियों में शामिल होने और सत्ता हथियाने के शक में घर से निकालने का फैसला किया।
वह रात: जब मेनका और वरुण को घर छोड़ना पड़ा
28 मार्च 1982 की रात, इंदिरा गांधी विदेश से वापस आईं और मेनका से बात करने लगीं। बातचीत के दौरान, इंदिरा ने मेनका से घर छोड़ने को कहा। मेनका ने इसका विरोध किया, लेकिन इंदिरा गांधी अपने फैसले पर अड़ी रहीं। मेनका ने अपनी बहन को इस बारे में बताया, लेकिन इंदिरा ने उन्हें बिना किसी सामान के घर छोड़ने का आदेश दिया। रात के करीब 11 बजे, मेनका गांधी ने अपने दो साल के बेटे वरुण गांधी को साथ लिया और घर छोड़ दिया।
संजय गांधी के नाम पर राजनीतिक शुरुआत
मेनका गांधी ने अपने संघर्षमय जीवन को संवारने के लिए लेखन की ओर रुख किया और फिर 1983 में संजय गांधी के नाम पर ‘राष्ट्रीय संजय मंच’ पार्टी बनाई। 1984 में उन्होंने राजीव गांधी के खिलाफ अमेठी से चुनाव लड़ा, लेकिन हार का सामना करना पड़ा। बाद में, 1988 में उन्होंने अपनी पार्टी का विलय जनता दल के साथ किया और 1989 में अपना पहला लोकसभा चुनाव जीता।
राजनीतिक सफर की निरंतरता
1992 में उन्होंने ‘पीपल फॉर एनिमल्स’ नामक संस्था की स्थापना की और 1996 तथा 1998 में पीलीभीत से निर्दलीय चुनाव जीतकर संसद पहुंचीं। 1999 में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी का समर्थन किया और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री बनीं। 2004 में उन्होंने भाजपा के साथ अपने बेटे वरुण गांधी के साथ जुड़ाव किया और कई बार सांसद चुनी गईं।
मेनका गांधी: एक बेबाक नेता
मेनका गांधी अपने बेबाक अंदाज और मुद्दों पर स्पष्ट राय रखने के लिए जानी जाती हैं। चाहे वह महिला अधिकारों की बात हो या पर्यावरण और पशु अधिकारों की, मेनका गांधी हमेशा मुखर रहती हैं। उनकी इसी बेबाकी ने उन्हें भारतीय राजनीति में एक अलग पहचान दी है।
निष्कर्ष
मेनका गांधी की कहानी संघर्ष, साहस और अपने सिद्धांतों पर अडिग रहने की कहानी है। वह एक ऐसी महिला हैं जिन्होंने हर कठिनाई का सामना करते हुए खुद को राजनीति में स्थापित किया और आज भी अपने विचारों के लिए जानी जाती हैं।
FAQs
1. मेनका गांधी ने संजय गांधी से कब शादी की थी?
मेनका गांधी और संजय गांधी की शादी 23 सितंबर 1974 को हुई थी।
2. मेनका गांधी ने कौन सी पत्रिका शुरू की थी?
मेनका गांधी ने ‘सूर्या’ नामक एक राजनीतिक पत्रिका शुरू की थी।
3. मेनका गांधी को इंदिरा गांधी ने घर से कब निकाला था?
28 मार्च 1982 की रात को मेनका गांधी को इंदिरा गांधी ने घर छोड़ने का आदेश दिया था।
4. मेनका गांधी ने किस पार्टी की स्थापना की थी?
मेनका गांधी ने 1983 में ‘राष्ट्रीय संजय मंच’ पार्टी की स्थापना की थी।
5. मेनका गांधी ने किस संस्था की स्थापना की?
मेनका गांधी ने 1992 में ‘पीपल फॉर एनिमल्स’ नामक संस्था की स्थापना की।