Ajmer Blackmail kand 1990 के दशक में अजमेर में हुए कुख्यात ब्लैकमेल और गैंगरेप कांड की कहानी, जिसमें रसूखदारों ने 100 से अधिक कॉलेज छात्राओं को बनाया अपना शिकार। जानें कैसे हुआ इस कांड का खुलासा और किसने दी उन्हें सजा।
Ajmer Blackmail kand: कैसे रसूखदारों ने 100 से अधिक छात्राओं को बनाया शिकार
बहुचर्चित Ajmer Blackmail kand जिसने पूरे देश को झकझोर दिया, 1990 के दशक में शुरू हुआ। इस कांड में शहर के रसूखदार युवकों ने 100 से अधिक कॉलेज की छात्राओं को अपना शिकार बनाया। इन रसूखदारों में मुख्य रूप से यूथ कांग्रेस के स्थानीय नेता शामिल थे, जो अपनी राजनीतिक और सामाजिक ताकत का इस्तेमाल करके छात्राओं का शोषण करते रहे।
Ajmer Blackmail kand: कैसे शुरू हुआ यह कांड?
इस भयावह कांड की शुरुआत तब हुई जब कुछ प्रभावशाली युवकों ने एक लड़की को अपने चंगुल में फंसा लिया। इसके बाद उन्होंने उसी लड़की को ब्लैकमेल करते हुए दूसरी लड़कियों को फंसाने का दबाव बनाया। इस तरह, एक के बाद एक, इन दरिंदों ने 100 से अधिक छात्राओं के साथ गैंगरेप किया और उन्हें ब्लैकमेल किया। गैंगरेप के दौरान आरोपियों ने लड़कियों की नग्न तस्वीरें खींचीं और उन तस्वीरों के जरिए उन्हें ब्लैकमेल करते रहे।
कौन थे इसके पीछे के रसूखदार?
इस घृणित कांड के मुख्य आरोपी थे अजमेर यूथ कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष फारुख चिश्ती, उनका साथी नफीस चिश्ती, और अनवर चिश्ती। इनके साथ अन्य रसूखदार युवकों का एक गिरोह भी शामिल था। यह गिरोह फार्महाउस और रेस्टोरेंट्स में पार्टियों के नाम पर लड़कियों को बुलाता था, जहां उन्हें नशीला पदार्थ पिलाकर उनके साथ दुष्कर्म किया जाता था। इसके बाद उनकी नग्न तस्वीरें खींचकर उन्हें ब्लैकमेल किया जाता था, जिससे लड़कियां डरकर उनके चंगुल में फंसी रहती थीं।
कैसे हुआ मामले का खुलासा?
इस कांड का खुलासा तब हुआ जब अजमेर के एक कलर लैब से कुछ अश्लील तस्वीरें लीक हो गईं। इन तस्वीरों ने पूरे शहर में हड़कंप मचा दिया। पुलिस ने जब इन तस्वीरों के आधार पर जांच शुरू की, तो इस ब्लैकमेल और गैंगरेप कांड का पर्दाफाश हुआ। इस कांड की भयावहता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि शुरुआती जांच में एक भी पीड़िता सामने नहीं आई थी, लेकिन बाद में 18 लड़कियों ने अदालत में बयान दिया।
न्याय की राह में अड़चनें
इस कांड के सामने आने के बाद भी पुलिस और प्रशासन ने इसे दबाने की कोशिश की। आरोपियों की राजनीतिक और सामाजिक ताकत के चलते पुलिस मामले को रफा-दफा करने में लगी रही। लेकिन जब स्थानीय दैनिक नवज्योति अखबार में युवा रिपोर्टर संतोष गुप्ता ने इस कांड की खबर लिखी, तो प्रशासन को मजबूरन कार्रवाई करनी पड़ी। इस खबर ने प्रशासन और समाज को हिला कर रख दिया, और आखिरकार मामले की जांच CID को सौंपी गई।
32 साल बाद आया फैसला
32 साल बाद, अजमेर कोर्ट ने इस कांड में बचे हुए सात आरोपियों में से छह को दोषी मानते हुए उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। दोषी करार दिए गए आरोपियों में नफीस चिश्ती, नसीम उर्फ टार्जन, सलीम चिश्ती, इकबाल भाटी, सोहेल गनी और सैयद जमीर हुसैन शामिल हैं। इन सभी को न्यायालय ने कठोर सजा सुनाई, लेकिन इस न्याय के लिए पीड़िताओं और उनके परिवारों को तीन दशकों से अधिक का इंतजार करना पड़ा।
निष्कर्ष
Ajmer Blackmail kand भारतीय इतिहास के सबसे घृणित अपराधों में से एक है। इस कांड ने समाज को दिखाया कि कैसे कुछ रसूखदार अपनी ताकत का दुरुपयोग करके निर्दोष छात्राओं का शोषण कर सकते हैं। हालांकि, 32 साल बाद आए इस फैसले ने साबित कर दिया कि भले ही देर हो, लेकिन न्याय जरूर मिलता है। इस मामले से सीख लेकर समाज को सतर्क रहने और ऐसे अपराधों के खिलाफ आवाज उठाने की जरूरत है।